केंद्र सरकार ने वो कदम उठा लिया है, जिसे कई राजनीतिक दल सिर्फ मांग तक सीमित थे जातीय जनगणना|
Editor : Anjali Mishra | 01 May, 2025
देश की राजनीति में हलचल मचाने वाला फैसला केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना कराने का एलान कर दिया है।

Source or Copyright Disclaimer
"एक फैसला, जो सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं… बल्कि भारत की राजनीति की धारा बदल सकता है। जातीय जनगणना को लेकर वर्षों से जो सवाल हवा में थे, अब वो हकीकत बन चुके हैं। केंद्र सरकार ने वो कदम उठा लिया है, जिसे कई राजनीतिक दल सिर्फ मांग तक सीमित रखते थे। बिहार की भूमिका, प्रधानमंत्री की मंजूरी, और देशभर की प्रतिक्रियाएं ये सब मिलकर एक नया इतिहास लिखने जा रहे हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये वाकई सामाजिक न्याय की जीत है… या 2025 और आगे की राजनीति का सबसे बड़ा गेम प्लान?"
देश की राजनीति में हलचल मचाने वाला फैसला – केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना कराने का एलान कर दिया है। यह फैसला मोदी कैबिनेट की बैठक में लिया गया। सरकार का मानना है कि इससे योजनाओं को ज्यादा प्रभावी ढंग से बनाया जा सकेगा।इस फैसले पर सबसे तीखी प्रतिक्रिया आई है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की। उन्होंने इसे ‘पुरानी मांग की पूर्ति’ बताया और प्रधानमंत्री मोदी का आभार जताया।जातीय जनगणना कराने की हमारी मांग बहुत पुरानी थी। केंद्र सरकार ने इसे स्वीकार कर लिया, यह स्वागतयोग्य है,नीतीश कुमार ने एक्स पर लिखा।
नीतीश ने साफ कहा इस जनगणना से विकास की योजनाओं को दिशा मिलेगी और पिछड़े वर्गों की सही पहचान हो सकेगी।केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने इसे ऐतिहासिक बताया।
जो लोग जातीय जनगणना की राजनीति करते रहे, उन्होंने इसे कभी किया नहीं। अब जब मोदी सरकार ने किया है, तो वे क्या कहेंगे? मांझी ने ट्वीट कर विपक्ष पर निशाना साधा।बिहार इस फैसले की भूमिका में केंद्र में रहा है। जातीय जनगणना की शुरुआत यहीं से हुई थी।नीतीश कुमार ने सभी दलों की सर्वदलीय बैठक बुलाई, सबको एक मंच पर लाया और प्रधानमंत्री से मिलकर मांग रखी।
बिहार में जातीय गणना हुई, और इसी आधार पर 65% तक आरक्षण बढ़ाने की सिफारिश हुई हालांकि सुप्रीम कोर्ट की रोक के चलते यह लागू नहीं हो सका।
94 लाख गरीब परिवार
2 लाख रुपये की मदद योजना
सामाजिक सुधार योजनाएं
अब बात उस नेता की जो जातीय जनगणना की बात सबसे पहले 1996 में लेकर आए थे लालू प्रसाद यादव।
लालू कहते हैं -"हमने संयुक्त मोर्चा सरकार में जाति आधारित गणना को मंजूरी दिलवाई थी। लेकिन एनडीए सरकार ने उसे लागू नहीं किया।
हालांकि यह भी सच है कि हालिया अभियान का श्रेय नीतीश कुमार को ही जाता है।
जब विपक्षी दलों का गठबंधन I.N.D.I.A बना तो तय हुआ कि सत्ता में आने पर जातीय जनगणना उनकी प्राथमिकता होगी।
लेकिन एक दिलचस्प मोड़ आया – कांग्रेस नेता राहुल गांधी और ममता बनर्जी ने उस प्रस्ताव का विरोध किया था।
आज राहुल गांधी इस फैसले का श्रेय ले रहे हैं।लेकिन क्या यह राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है?
जातीय जनगणना अब एक आंकड़ों की कवायद नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और राजनीति की दिशा तय करने वाला मुद्दा बन चुका है।
राजनीतिक विश्लेषक और सामाजिक कार्यकर्ताओं से 5 मिनट की चर्चा क्या यह फैसला चुनावी गणित को बदलेगा?
जातीय जनगणना को लेकर लंबे समय से मांग उठती रही है कि देश में योजनाएं केवल आर्थिक आधार पर नहीं, बल्कि सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखकर भी बनाई जाएं। अब जब केंद्र सरकार ने इसे स्वीकार किया है, तो यह सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
यह फैसला आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों की रणनीति पर भी असर डालेगा। कई दल जातीय आधार पर सीटों के बंटवारे और घोषणापत्र तैयार करने की दिशा में अब स्पष्टता से काम कर सकेंगे।
जातीय जनगणना से यह स्पष्ट हो सकेगा कि देश में ओबीसी, ईबीसी और अन्य पिछड़े वर्गों की सही आबादी कितनी है। इससे उनके लिए आरक्षण, शिक्षा और रोजगार से जुड़ी योजनाएं अधिक प्रभावी बनाई जा सकती हैं।
कई विपक्षी दल, जो इस मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरते रहे हैं, अब खुद असहज स्थिति में हैं। क्योंकि अब जब सरकार ने खुद पहल की है, तो उनके पास इस मुद्दे पर हमले का नैतिक आधार कमजोर पड़ता दिख रहा है।
बिहार सरकार ने पहले ही जातीय गणना कराकर इसकी उपयोगिता साबित कर दी थी। अब केंद्र सरकार ने उसे स्वीकार कर, राज्य-केंद्र संबंधों में एक नया समन्वय स्थापित किया है, जो आगे चलकर नीति निर्धारण में उपयोगी हो सकता है।
हालांकि केंद्र सरकार ने फैसला तो ले लिया है, लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी और संवैधानिक प्रक्रिया के तहत लागू करना भी एक चुनौती होगी। पहले बिहार में आरक्षण बढ़ाने के फैसले को अदालत ने रोका था।
जातीय जनगणना के आंकड़ों के बाद यह उम्मीद की जा रही है कि आरक्षण की सीमा या उसमें संशोधन को लेकर नई बहस शुरू हो सकती है। कुछ वर्गों का तर्क है कि आबादी के अनुपात में उन्हें प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
यह जनगणना महज जातियों की गिनती नहीं है, बल्कि यह सरकार को एक ऐसा डेटाबेस देगी जिससे स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और रोज़गार जैसे क्षेत्रों की योजनाएं ज्यादा सटीक बन सकेंगी।
हालिया घटनाओं से साफ है कि अब जातीय जनगणना का श्रेय लेने की होड़ लग गई है। राहुल गांधी, ममता बनर्जी, लालू यादव और नीतीश कुमार सभी इसे अपनी जीत बता रहे हैं, लेकिन फैसला आखिरकार केंद्र सरकार ने किया।
आम जनता अब यह देख रही है कि सिर्फ घोषणा नहीं, आंकड़ों का इस्तेमाल कैसे होगा। क्या वाकई इससे गरीबों और वंचितों का कल्याण होगा या यह एक और चुनावी जुमला बनकर रह जाएगा।